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No one is talking about poors : गरीबों की बात कौन करता है?

दोस्तों नमस्कार,

जब भी बात आती है गरीबी की तो मन में सहज ही उन लोगों की तस्वीर सामने आ जाती है जो रोड किनारे फूटपाथ और झोपड़ी में रहकर मजदूरी का काम करते हैं। ये लोग अपने घर परिवार को छोड़कर अपने क्षेत्र से बाहर आकर अपने और अपने परिवार के लिए रोजी रोटी कमाने आते हैं। इनके आंखों में एक सपना होता है कि खुद के लिए और परिवार के लिए।

गरीब बच्चे (गूगल इमेज)

भारत में ज्यादातर संख्या गरीबों की है। देश की लगभग 68 प्रतिशत जनसंख्या गांव में निवास करती है। भारत में रोजगार के ज्यादातर ऑप्शन शहरों में हैं। गांव में लोगों को कम रोजगार के साधन मिलने की वजह से लोग अपने परिवार को गांव में छोड़कर या फिर अपने परिवार को साथ लेकर शहर की तरफ जाते हैं।

रोजगार के लिए लोगों का शहरों की तरफ पलायन शहरों में आबादी की समस्या भी उत्पन्न कर रहा है। शहरों में लोगों की संख्या बढ़ रही है। लोग शहर में रिक्शा चालक, मजदूर और अन्य छोटे काम करने को मजबूर हैं, क्योंकि उन्हें अपनी और अपने परिवार का पोषण करना है। गांव में उन्हें ये सुविधा मिलती नहीं है और शहर में अपनी जीवन शैली को बेहतर बनाने के उद्देश्य लेकर आते तो जरूर हैं लेकिन जिंदगी बदतर हो जाती है।

भारत के चार मेगा शहरों में लोग अपने रोजगार की तलाश में आते हैं। हर दिन हजारों की संख्या में लोग इन शहरों में आते हैं। लेकिन कम आमदनी की वजह से जीवन शैली में सुधार नहीं ला पाते हैं। इन बड़े शहरों में कई ऐसी बस्तियां हैं जहां ये गरीब लोग रहते हैं।

गूगल इमेज

देश में जो भी सरकार आती है वो गरीबों की बात तो करती है लेकिन उनके लिए कुछ खास कर नहीं पाती है। पता नहीं सरकार की कौन सी मजबूरी है। सत्ता में आते ही पार्टियां अपने वादे से मुकर जाती हैं। अगर थोड़ी बहुत कोशिश सरकार करती भी है तो वह भी बीच में बैठे ब्यूरोक्रैट्स और ठेकेदार की बलि चढ़ जाती है। भारत में गरीबों न्यूनतम से भी कम की रकम मिल पाती है या फिर मिलती नहीं है।

चुनाव के वक्त सभी पार्टियां गरीबों की बात करती है। उनके और उनके परिवार की बात करती है। उनके बच्चों को बेहतर जीवन और शिक्षा की बात भी करती है। लेकिन ये हकीकत नहीं बन पाता है। क्यों?  कमी कहां रह जाती है। क्या सरकारी तंत्र ऐसा करने में सक्षम नहीं है या फिर ये देश में फैले भ्रष्ट्राचार की भेंट चढ़ जाती है।

एक तरफ देश में अमीरों की अमीरी भी खूब झलकती है तो दूसरी तरफ गरीबों का गरीबी भी। पार्टियां, संस्थाएं, समाज, मीडिया और सरकार सभी गरीब की बात करते हैं लेकिन कोई इनके के लिए करता कुछ नहीं। गरीब के आंखों के सपने उनके आंखों में ही रह जाते हैं, वो कभी हकीकत नहीं बन पाते।

ऐसा क्या वजह है कि सरकार और समाज दोनों ही इनकी मदद करने में असफल है? क्या इन्हें खुद से अपनी आवाज उठानी होगी या फिर इनमें से कोई ऐसा होगा जो इनके लिए भगवान बनकर आएगा। खैर जो भी, लेकिन एक बात तो सच है कि यहां पर गरीब को अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी है। कोई और इनके लिए नहीं आने वाला। वैसे भी सच कहा गया है कि जो अपनी मदद खुद करता है भगवान भी उनकी मदद ही करता है। 
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