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What is Article 370 for Jammu and Kashmir? जम्मू और कश्मीर में आर्टिकल 370 क्या है?

जम्मू-कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है। ये तो आप सभी जानते होंगे कि जम्मू-कश्मीर आजादी के बाद से ही भारत का अंग नहीं रहा है बल्कि यह प्राचीन समय से ही भारत का अंग रहा है। जो पाकिस्तान आज कश्मीर पर अपनी आंख जमाए हुए हैं वह भी कभी भारत का ही अंग था। लेकिन आज कश्मीर भारत के लिए एक समस्या बन गया है। यहां पर पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन अक्सर ही अशांति फैलाने की कोशिश में लगे रहते हैं।

Article 370 in jammu and kashmir (Santosh Bhartiya Image)


किसी भी महीने में कोई ऐसा दिन नहीं होता जब हमें कश्मीर में किसी दुखद घटना की खबर न मिलती हो। दरअसल कश्मीर वक्त बीतने के साथ-साथ भारत के लिए और अधिक पेंचिदा बनता जा रहा है। जम्मू और कश्मीर को भारतीय संविधान के तहत स्वायत्ता प्राप्त है। यहां पर भारत के संसद द्वारा पारित कुछ ही कानून लागू होते हैं। किसी भी नए कानून या संशोधन को जम्मू-कश्मीर में लागू करवाने के लिए पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा द्वारा अनुमोदित करवाना पड़ता है। 


जम्मू-कश्मीर विधानसभा द्वारा दोबारा पारित होने के बाद भी भारत का कानून जम्मू-कश्मीर में लागू होता है। जम्मू-कश्मीर की ये कहानी शुरू होती है आजादी के बाद से। 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली। आजादी के साथ ही भारत के दो टुकड़े भी कर दिए गए। एक बना पाकिस्तान और एक भारत। पाकिस्तान को दो हिस्सों में विभाजित किया गया था। पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान। आज पूर्वी पाकिस्तान बंग्लादेश के नाम से जाना जाता है। जिसे भारत ने 1971 में आजादी दिलवायी थी।

Map of Jammu and Kashmir (Google Image)


आजादी के बाद कश्मीर पर उस वक्त राजा हरि सिंह का शासन था। राजा हरि सिंह वहां के राजा थे। उस वक्त यह प्रांत न तो पाकिस्तान के अंदर था और न ही भारत के। लेकिन आजादी के बाद पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला कर दिया। कश्मीर पर हमला करने के बाद पाकिस्तान बड़ी ही तेजी के साथ कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर कब्जा करने जा रहा था। जब राजा हरि सिंह को अपनी हार सामने दिखने लगी तो उन्होंने भारत सरकार से सहयोग मांगा। 


राजा हरि सिंह के अनुरोध पर भारत ने उनकी मदद की और कश्मीर से पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ कर कश्मीर को कब्जा होने से बचा लिया। इस मदद के एवज में राजा हरि सिंह ने कश्मीर का विलय भारत में किया। विलय के बाद भारत ने कश्मीर को जम्मू के साथ मिलाकर नया राज्य जम्मू और कश्मीर बनाया। भारत ने यहां पर लोकतंत्र की नींव रखी और यहां पर एक लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना की। 


लेकिन इन सबसे वाबजूद कश्मीर में गाहे-बगाहे हिंसा की घटनाएं सामने आती रहती है। कश्मीर में हासिल करने के लिए पाकिस्तान ने भारत के साथ तीन युद्ध लड़ा लेकिन किसी में भी उसे जीत हासिल नहीं हुई। लगातार हार से बौखलाए पाकिस्तान ने कश्मीर में एक छद्म युद्ध के सहारे भारत और कश्मीर को अस्थिर करने का असफल प्रयास कर रहा है। कश्मीर की कुछ स्थितियां भी जिम्मेदार हैं आतंकी घटनाओं के लिए। जिनमें आर्टिकल 370 भी एक है।

Jammu and Kashmir occupied by china and pakistan (Google Image)


आइए जानते हैं कि आर्टिकल 370 क्या है? और कश्मीर और भारत के बीच यह किस तरह से एक बाधा की तरह काम करता है। 

1. भारतीय संविधान के तहत अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को एक विशेष स्वायत्ता वाले राज्य का दर्जा दिलाता है। 

2. अनुच्छेद 370 को 1947 में शेख अब्दुल्ला ने तैयार किया था। जिसें प्रधानमंत्री नेहरू और राजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। 

3. शेख अब्दुल्ला ने 370 को लेकर यह दलील दी थी कि संविधान में इसका प्रबंध अस्‍थायी रूप में ना किया जाए। उन्होंने राज्य के लिए मजबूत स्वायत्ता की मांग की थी, हांलांकि केंद्र सरकार ने तब इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। 

4. अनुच्छेद 370 की वजह से ही जम्मू-कश्मीर का अपना अलग झंडा और प्रतीक चिन्ह भी है। 1965 तक जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री हुआ करता था।

5. 370 के प्रावधानों के अनुसार संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है। लेकिन अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य का अनुमोदन चाहिए।

6. अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर पर संविधान का अनुच्छेद 356 लागू नहीं होता। जिस वजह से राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है।

7. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 जिसमें देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता।

8. भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं। यहां दूसरे राज्य के नागरिक सरकारी नौकरी नहीं कर सकते। यहां के नागरिकों के पास दो-दो नागरिकता होती है। एक नागरिकता जम्मू-कश्मीर की और दूसरी भारत की होती है।
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One nation one election: एक देश एक चुनाव देश की जरूरत

पिछले कुछ सालों से केंद्र सरकार देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव को एक साथ कराने को लेकर कोशिशें कर रही है। खुद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस विचार पर अपनी सहमति व्यक्त की है। देश में इस तरह का चुनाव कराने में भले ही केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के पास संवैधानिक दिक्कतें हैं, लेकिन वर्तमान केंद्र सरकार इसके दिशा में एक सकारात्मक कदम उठा सकती है। 


Voting (Google Image)

ऐसी चर्चा है कि देश में 2019 में होने वाले आम चुनाव में राज्यों के चुनाव (विधानसभा चुनाव) भी साथ कराया जा सकता है। इसके लिए केंद्र सरकार को कोई बड़ा संवैधानिक संशोधन के रास्ते से भी नहीं गुजरना पड़ेगा। इस दिशा में 14 अगस्त 2018 को विधि आयोग के चेयरमैन बीएस चौहान ने देश की दोनों बड़ी पार्टियों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात भी की थी। 


इससे पहले कई क्षेत्रीय पार्टियों को भी इस दिशा में उनकी क्या राय है यह जानने के लिए बुलाया गया था। 2019 में जम्मू-कश्मीर, बिहार, झारखंड सहित कुल 12 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। बीजेपी सरकार को इस दिशा में आगे बढ़ने में कोई दिक्कत भी नहीं होगी, क्योंकि कई राज्यों में बीजेपी की अपनी सरकार है तो वहीं कुछ राज्यों में बीजेपी सहयोगी के रूप में है। 


Voting (Google Image)

जिन राज्यों में लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव हैं वहां पर आम चुनाव तक राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। वहीं जिन राज्यों में चुनाव लोकसभा चुनाव के बाद चुनाव है वहां पर विधानसभा भंग कर चुनाव कराए जा सकते हैं। केंद्र सरकार एक देश एक चुनाव के पक्ष में इसलिए भी है क्योंकि भारत जैसे विशाल देश में हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव होता ही रहता है। 


बार-बार होने वाले इन चुनावों से जहां देश पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ता है वहीं केंद्र सरकार का चुनाव कराने में ही ज्यादातर समय निकल जाता है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक होने से देश की संशाधनों की बचत के साथ-साथ बार-बार होने वाले खर्चों से भी बचा जा सकेगा। चुनाव आयोग इसके लिए पूरी तरह से तैयार है। 


जहां तक राज्यों में विधानसभा चुनाव का सवाल है तो हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड के विधानसभा चुनाव 2019 के अक्टूबर महीने में है। जो कि लोकसभा चुनाव के बाद पड़ता है। वहीं जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन है। यानि इन राज्यों में एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं।


Election Commission (Google Image)

कितना खर्च भारत में चुनाव के वक्त होता है-
जहां तक चुनावी खर्चों का सवाल है, भारत में चुनाव कराना काफी महंगा है। भारत इस मामले में अमेरिका से भी आगे है। 15वीं लोकसभा चुनाव का खर्च करीब 10 हजार करोड़ रुपए बैठने का अनुमान है। यह राशि अमेरिकी चुनाव से भी ज्यादा है। अमेरिकी फेडरल इलेक्शन कमीशन के सूचना के मुताबिक, 2007-08 के अमेरिकी चुनाव में कुल 8000 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। 


सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के रिपोर्ट के अनुसार, भारत में इस बार के लोकसभा चुनाव में पिछले साल के मुकाबले दोगुनी राशि खर्च होने का अनुमान है। इसमें चुनाव आयोग की तरफ से अकेले 1300 करोड़ रुपए की राशि खर्च की जाएगी। जबकि 700 करोड़ रुपए केंद्रीय और सरकारी एजेंसियों द्वारा खर्ज किए जाएंगें।
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Politics in Bihar: जदयू और भाजपा के गठबंधन की परीक्षा बिहार विधानसभा चुनाव

11:54 PM
बिहार हमेशा से ही भारत की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता आया है। बिहार और यूपी के लोगों का सपोर्ट किसी भी पार्टी को दिल्ली में सरकार बनाने के लिए जरूरी होता है। इसकी मुख्य वजह है सीटों की संख्या। बिहार और यूपी में लोकसभा की कुल सीटें हैं।


हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद भाजपा की खूब किरकिरी भी हुई। हालांकि इस हार के बारे में यह भी कहा गया कि कांग्रेस की जीत भाजपा से वोटरों की बेरूखी की वजह से हुई है। इसमें कांग्रेस ने कुछ खास नहीं किया है। लेकिन कांग्रेस के सपोर्टर्स इसे कांग्रेस के मेहनत की जीत करार दे रहे हैं। 


नीतीश कुमार, अमित शाह और रामविलास पासवान (गूगल इमेज)


पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस ने तीन राज्यों में अपना विजय पताखा पहरा दिया। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस ने सरकार बनाई तो वहीं छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने सीएम पद की जिम्मेदारी संभाली। जबकि मध्यप्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ने सरकार बनाई। 


चुनाव में भाजपा की हार के बाद बिहार में भी इसका असर दिखने लगा। बिहार में भाजपा और जदयू की सरकार है। जदयू भाजपा के साथ मिलकर बिहार में सरकार चला रही है। हार के बाद बिहार की राजनीति में जबरदस्त उथल-पुथल देखा गया। बिहार में विपक्षी नेताओं ने नीतीश सरकार पर हमला तेज कर दिया। 


विपक्षी पार्टियां नीतीश सरकार पर विफल होने का आरोप लगा रही है। बिहार सरकार के शराबबंदी के फैसले को भी विपक्षी पार्टी गलत बता रही है। राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर भी विपक्ष ने नीतीश सरकार पर जमकर निशाना साधा। 

अमित शाह और नीतीश कुमार (साथ में सुशील कुमार मोदी) गूगल इमेज


अब बिहार में आगामी लोकसभा को देखते हुए जदयू और भाजपा ने सीटों के बंटबारे का फॉर्मूला तैयार किया। लेकिन भाजपा के कई सहयोगी दल इससे नाराज हो गए। उपेन्द्र कुशवाहा ने भाजपा से अंतत: अलग होने का फैसला लिया और अलग हो गए। कुशवाहा के अलग होने के बाद एनडीए के एक और घटक दल ने सीट बंटबारे पर नाराजगी जताई। 


एनडीए में शामिल लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने भाजपा को चेतावनी देते हुए सीट बंटवारे को लेकर फिर से विचार करने को कहा। लेकिन बात नहीं बनी। लोकसभा चुनाव से पहले जदयू और भाजपा ने 100 में से 50-50 प्रतिशत सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया। 


लोकसभा चुनाव से ठीक बाद बिहार में विधानसभा चुनाव भी है। ऐसे में भाजपा को इस बात चिंता हो सकती है कि अगर लोकसभा में नैया पार लग भी गई तो आगे आने वाले विधानसभा चुनाव में क्या होगा। नाराज पार्टियां एनडीए के खिलाफ गठबंधन या लामबंद हो सकते है। अगर ऐसा करने में वे कामयाब होते तो भाजपा के लिए आगामी बिहार विधानसभा चुनाव मुश्किल भरा हो सकता है। 
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No one is talking about poors : गरीबों की बात कौन करता है?

दोस्तों नमस्कार,

जब भी बात आती है गरीबी की तो मन में सहज ही उन लोगों की तस्वीर सामने आ जाती है जो रोड किनारे फूटपाथ और झोपड़ी में रहकर मजदूरी का काम करते हैं। ये लोग अपने घर परिवार को छोड़कर अपने क्षेत्र से बाहर आकर अपने और अपने परिवार के लिए रोजी रोटी कमाने आते हैं। इनके आंखों में एक सपना होता है कि खुद के लिए और परिवार के लिए।

गरीब बच्चे (गूगल इमेज)

भारत में ज्यादातर संख्या गरीबों की है। देश की लगभग 68 प्रतिशत जनसंख्या गांव में निवास करती है। भारत में रोजगार के ज्यादातर ऑप्शन शहरों में हैं। गांव में लोगों को कम रोजगार के साधन मिलने की वजह से लोग अपने परिवार को गांव में छोड़कर या फिर अपने परिवार को साथ लेकर शहर की तरफ जाते हैं।

रोजगार के लिए लोगों का शहरों की तरफ पलायन शहरों में आबादी की समस्या भी उत्पन्न कर रहा है। शहरों में लोगों की संख्या बढ़ रही है। लोग शहर में रिक्शा चालक, मजदूर और अन्य छोटे काम करने को मजबूर हैं, क्योंकि उन्हें अपनी और अपने परिवार का पोषण करना है। गांव में उन्हें ये सुविधा मिलती नहीं है और शहर में अपनी जीवन शैली को बेहतर बनाने के उद्देश्य लेकर आते तो जरूर हैं लेकिन जिंदगी बदतर हो जाती है।

भारत के चार मेगा शहरों में लोग अपने रोजगार की तलाश में आते हैं। हर दिन हजारों की संख्या में लोग इन शहरों में आते हैं। लेकिन कम आमदनी की वजह से जीवन शैली में सुधार नहीं ला पाते हैं। इन बड़े शहरों में कई ऐसी बस्तियां हैं जहां ये गरीब लोग रहते हैं।

गूगल इमेज

देश में जो भी सरकार आती है वो गरीबों की बात तो करती है लेकिन उनके लिए कुछ खास कर नहीं पाती है। पता नहीं सरकार की कौन सी मजबूरी है। सत्ता में आते ही पार्टियां अपने वादे से मुकर जाती हैं। अगर थोड़ी बहुत कोशिश सरकार करती भी है तो वह भी बीच में बैठे ब्यूरोक्रैट्स और ठेकेदार की बलि चढ़ जाती है। भारत में गरीबों न्यूनतम से भी कम की रकम मिल पाती है या फिर मिलती नहीं है।

चुनाव के वक्त सभी पार्टियां गरीबों की बात करती है। उनके और उनके परिवार की बात करती है। उनके बच्चों को बेहतर जीवन और शिक्षा की बात भी करती है। लेकिन ये हकीकत नहीं बन पाता है। क्यों?  कमी कहां रह जाती है। क्या सरकारी तंत्र ऐसा करने में सक्षम नहीं है या फिर ये देश में फैले भ्रष्ट्राचार की भेंट चढ़ जाती है।

एक तरफ देश में अमीरों की अमीरी भी खूब झलकती है तो दूसरी तरफ गरीबों का गरीबी भी। पार्टियां, संस्थाएं, समाज, मीडिया और सरकार सभी गरीब की बात करते हैं लेकिन कोई इनके के लिए करता कुछ नहीं। गरीब के आंखों के सपने उनके आंखों में ही रह जाते हैं, वो कभी हकीकत नहीं बन पाते।

ऐसा क्या वजह है कि सरकार और समाज दोनों ही इनकी मदद करने में असफल है? क्या इन्हें खुद से अपनी आवाज उठानी होगी या फिर इनमें से कोई ऐसा होगा जो इनके लिए भगवान बनकर आएगा। खैर जो भी, लेकिन एक बात तो सच है कि यहां पर गरीब को अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी है। कोई और इनके लिए नहीं आने वाला। वैसे भी सच कहा गया है कि जो अपनी मदद खुद करता है भगवान भी उनकी मदद ही करता है। 
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India-China relation : भारत और चीन के बनते-बिगरते रिश्ते

11:55 PM
दोस्तों नमस्कार,

मैं हूं संतोष भारतीय, आज हम बात करेंगे भारत और चीन के रिश्तों के बारे में। चीन और भारत एक-दूसरे के पड़ोसी हैं और साथ ही दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते भी हैं। भारत और चीन की आजादी लगभग एक-समय में ही हुई है। चीन अपनी आजादी के बाद तेजी से आगे बढ़ता हुआ आज विश्व में अपनी पहचान बना चुका है।

भारत - चीन संबंध (गूगल इमेज)

भारत भी आजादी के बाद से आज 21वीं सदी का भारत बन चुका है। एक तरफ जहां चीन अंतरिक्ष में ऊंचाईयां को छू रहा है तो वहीं भारत भी अंतरिक्ष और टेक्नोलॉजी की दुनिया में अठखेलियां ले रहा है। आज भारत टेक्नोलॉजी और स्पेश जुड़ी कई चीजों को अपने देश में ही बनाता है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत पर आज विश्व की नजर है।


भारत आने वाले समय का महाशक्ति है। वहीं चीन भी बड़ी तेजी के साथ आगे बढ़ने की होड़ में है। भारत और चीन का रिश्ता आज जैसा है वैसा पहले नहीं था। आजादी के समय भारत सूदूर तिब्बत तक फैला हुआ था। भारत चीन को एक दोस्त की तरह मानता था। लेकिन चीन ने धोखे से भारत पर हमला किया और तिब्बत का एक बड़ा भूभाग अपने कब्जे में कर लिया।


भारत और चीन के बीच इस भूभाग को लेकर आज भी विवाद है। एक तरफ जहां चीन तिब्बत को अपना हिस्सा बताता है तो वहीं भारत इसे प्राचीन समय से भारत का हिस्सा बताता रहा है। हालांकि इन सब बातों के अलावा भारत और चीन के बीच अरबों डॉलर का आर्थिक गतिविधि भी होता है।

नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग (गूगल इमेज)

सीआईटीआई के आंकड़ों के मुताबिक, भारत और चीन के बीच 2017-18 के बीच 89.6 अरब डॉलर मूल्य का द्विपक्षीय व्यापार रहा है। भारत ने इसी वर्ष में 136.2 करोड़ डॉलर का निर्यात चीन को किया और 290.5 करोड़ डॉलर का आयात किया। इस प्रकार हम देखते हैं कि चीन और भारत के बीच एक बहुत ही बड़ी मात्रा में व्यापारिक गतिविधियां भी हैं।


इसके अलावा अरुणाचल मुद्दा और डोकलाम विवाद और अक्साई चिन का मामला भी दोनों देशों के बीच विवाद का विषय है। इससे साथ ही पाकिस्तान चीन इक्नॉमिक कॉरिडोर भी भारत चीन और पाकिस्तान के बीच एक विवाद का विषय है। क्योंकि यह कॉरिडोर पाकिस्तान के कब्जे वाले पीओके से होकर गुजरती है जिसे भारत अपना अभिन्न अंग बताता है। 
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Kashmir: An integral part of India ।। कश्मीर, भारत का अभिन्न हिस्सा

जम्मू-कश्मीर राज्य के कश्मीर संभाग को कौन नहीं जानता। देश दुनिया में मशहूर यह प्रदेश अपने अनूपम छटा के लिए जाना जाता है। कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है। यहां पर स्थिर छोटी पहाड़ियां, झरने, हरी-भरी झाड़ियां सहज ही आपका मन बार-बार अपनी ओर आकर्षित करता है।

जम्मू और कश्मीर (गूगल इमेज)


कश्मीर घाटी भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य का एक हिस्सा है। यह पीओके से सटा हुआ है। कश्मीर के सुंदर प्राकृतिक छटा देखकर आप खुद को यहां आने से रोक नहीं पाएंगे। हालांकि कश्मीर में इस वक्त जो हालात हैं वो काफी चिंताजनक हैं। 

भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद जम्मू-कश्मीर में फिलवक्त राष्ट्रपति शासन लागू है। राष्ट्रपति शासन खत्म होने के बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होंगे। चुनाव के बाद जो परिणाम आएगा वो राज्य का भाग्य आगे तय करेगा। 

जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग रहा है। भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे को लेकर विवाद है। कश्मीर के हिस्सों को देखा जाए तो यहां पर तीन देशों का शासन है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आजादी के बाद कश्मीर की विलय भारत के साथ हुआ था। लेकिन पाकिस्तान ने धोखे से कश्मीर में दखल दिया और ज्यादातर हिस्से पर कब्जा कर लिया। 

आज कश्मीर का वो हिस्सा जो भारत में है, उससे तीन गुणा ज्यादा हिस्से पर पाकिस्तान का कब्जा है। पाकिस्तान के अपने अधीन कश्मीर के हिस्से को प्राशसनिक तौर पर दो भागों में बांटा है। एक भाग है पीओके और दूसरा है गिलगित और बाल्टिस्तान। पाकिस्तान दोनों ही हिस्सों पर एक पर्यवेक्षक के सहारे शासन चलाता है। पाकिस्तान की इस हिस्सों में रह रहे लोगों के साथ बर्बरता को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना भी हो चुकी है। 

जम्मू-कश्मीर की झेलम नदी (गूगल इमेज)


वहीं दूसरी तरफ भारतीय कश्मीर के एक भाग पर चीन ने कब्जा कर रखा है। जिसे हम अक्साई चीन के नाम से जानते हैं। इसतरह संपूर्ण जम्मू और कश्मीर पर तीन देशों का शासन है। कश्मीर का यह हालात कैसे हो गया। 


बात है 1947 की जब पाकिस्तान के पख्तून कबाइलियों ने जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया। जिसके बाद जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार के साथ समझौता किया और इस प्रकार कश्मीर और जम्मू का भारत के साथ विलय हुआ। इस समझौते के तहत भारत सरकार सैन्य सुरक्षा मुहैया कराने के बदले जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय की बात कही। 

जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राजा हरि सिंह के हामी भरने के बाद भारत सरकार ने समझौते की कागजों पर हस्ताक्षर कर दिया। समझौते के बाद पाकिस्तान और भारत के साथ लड़ाई हुई। युद्ध खत्म होने के बाद कश्मीर दो हिस्सों में बंट गया। एक जो भारत के पास रहा वो जम्मू-कश्मीर कहलाया और जो पाकिस्तान के पास रहा वो पीओके के नाम से जाना गया। 

जम्मू और कश्मीर राज्य (गूगल इमेज)


पीओके क्षेत्र के लिए भारत की संसद ने 25 सीटें जम्मू-कश्मीर विधानसभा में और 7 सीटें लोकसभा में आरक्षित की है। पीओके को पाकिस्तान आजाद कश्मीर कहता है और यहां पर एक प्रधानमंत्री भी नियुक्त किया गया है। लेकिन इस क्षेत्र की प्राशसनिक व्यवस्था पाकिस्तान के इसलामाबाद से ही चलती है। 

उत्तीरी कश्मीर का गिलगित और बाल्टिस्तान में पाकिस्तान प्रांतीय सरकार द्वारा शासन चलाता है। यहां पर रहे शिया मुसलमानों को किसी भी प्रकार का कोई अधिकार नहीं है। समय-समय पर ये शिया भागकर भारतीय कश्मीर में रहने आने लगे हैं। 

इसके अलावा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का यह हिस्सा आतंकियों का गढ़ भी बन गया है। यहां पर आतंकियों को ट्रेनिंग दी जाती है। इस इलाके में आतंक की कई चौकियां भी हैं। भारत सरकार हमेशा से ही पीओके को भारत का हिस्सा बताता रहा है। भारत सरकार ने भारतीय कश्मीर में विकास के कार्यों को भी बखूबी अंजाम दिया है। लेकिन पाकिस्तान पीओके में ऐसा नहीं करता है। वह ऐसा करना भी नहीं चाहता, क्योंकि वह चाहता है कि संपूर्ण कश्मीर पर पाकिस्तान का कब्जा हो। 
Kashmir: An integral part of India ।। कश्मीर, भारत का अभिन्न हिस्सा  Kashmir: An integral part of India ।। कश्मीर, भारत का अभिन्न हिस्सा Reviewed by Santosh Bhartiya on 6:24 AM Rating: 5

भारत के लिए बांग्लादेश में हसीना के आने के क्या हैं मायने?

दोस्तों नमस्कार,


फिर से हाजिर हूं मैं संतोष भारतीय। आज हम बात करेंगे भारत और बांग्लादेश के संबंधों के बारे में। भारत एक संप्रभु देश रहा है। भारत की आजादी से पहले पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत का ही एक अंग थे। लेकिन आजादी के समय भारत के विभाजन के बाद ये दोनों देश भारत से अलग होकर नए देश बने।

India-Bangladesh


शुरुआत में पाकिस्तान दो हिस्सों में था। एक पूर्वी पाकिस्तान, जिसे आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है और दूसरा पश्चिमी पाकिस्तान जिसे आज पाकिस्तान के नाम से जाना जाता है। भारत और पाकिस्तान से रिश्ते तो सभी को पता है। लेकिन भारत और बांग्लादेश के रिश्ते भी पहले कमोबेश पाकिस्तान जैसे ही थे। लेकिन फिर वक्त के साथ इसमें सुधार होता गया। 

बांग्लादेश की आजादी में भारत का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पाकिस्तान के साथ हुए 70- के दशक के युद्ध के बाद बांग्लादेश का गठन हुआ था। भारत के योगदान के बाद बांग्लादेश 1971 को एक संपूर्ण राष्ट्र के रूप में दुनिया के नक्शे में आया। 

बांग्लादेश की आजादी के बाद से ही भारत और बांग्लादेश के बीच भी भूमि को लेकर विवाद था। हालांकि 2014 में भारत में भाजपा का सरकार बनने के बाद दोनों देशों के बीच के इस मसले को सुलझा लिया गया। इस फैसले के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों में सुधार देखा गया। 

नरेंद्र मोदी और शेख हसीना


अभी बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार है। हसीना सरकार को भारत के तरफ झुकाव रखने वाला माना जाता है। इसी सरकार के कार्यकाल में भारत और बांग्लादेश के बीच के भूमि विवाद को सुलझाया गया था। शेख हसीना की अवामी लीग और उनके सहयोगी दलों को 30 दिसंबर 2018 (रविवार) को हुए चुनाव में प्रचंड जीत हासिल हुई। 

अवामी लीग पार्टी की जीत के साथ ही फिर से शेख हसीना के सत्ता में वापसी की संभावना बढ़ गई है। ऐसे में यदि शेख हसीना बांग्लादेश की सत्ता में वापसी करती है तो यह भारत के लिहाज से एक रणनीतिक साझेदारी करने का मौका हो सकता है। 

30 दिसंबर को हुए चुनाव में अवामी लीग को 300 सीटों में से 299 सीटों पर चुनाव कराए गए थे। 299 सीटों में से 288 सीटों पर अवामी लीग और उनके सहयोगी दलों ने कब्जा जमा लिया है। इस जीत के साथ ही शेख हसीना ने कहा है कि उनकी सरकार की पहली प्राथमिकता होगी कि पहले से शुरू हुए कामों में गति लाना और जनता के लिए सुरक्षा प्रदान करना। 

भारत के साथ बांग्लादेश के संबंध हमेशा मैत्रीपुूर्ण ही रहे हैं। हालांकि कई मामलों में विवाद भी हुआ है। लेकिन फिर भी दोनों देशों के संबंधों को अगर देखा जाए तो आने वाले में यह दोनों देशों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।
भारत के लिए बांग्लादेश में हसीना के आने के क्या हैं मायने? भारत के लिए बांग्लादेश में हसीना के आने के क्या हैं मायने? Reviewed by Santosh Bhartiya on 4:45 AM Rating: 5

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार कर भी बीजेपी ने जीत ली बाजी

दोस्तों नमस्कार,


फिर से एक बार मैं संतोष भारतीय हाजिर हूं। आईए बात करते हैं हाल ही सम्पन्न हुई विधानसभा चुनावों की। जी हां हम उसी विधानसभा चुनाव की बात कर रहे हैं जिसमें कांग्रेस ने लंबे समय के बाद बीजेपी को पछार कर तीन राज्यों में जीत का स्वाद चखा और सरकार भी बनाई।



निश्चित तौर पर कांग्रेस इस जीत के बाद काफी हर्ष का अनुभव कर रही होगी। हालांकि कांग्रेस की यह जीत ज्यादा अहम मानी जा रही है इस लिहाज से कि 2019 का लोकसभा चुनाव भी नजदीक है। जनता में से कई जगहों से इस तरह की आवाज उठ रही है कि 2019 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस राहुल गांधी को एक पीएम कैन्डिडेट के रूप में प्रोजेक्ट करे।

लेकिन दोस्तों कांग्रेस की ये जीत काफी मुश्किल भरा रहा। कांग्रेस तीन राज्यों में सरकार तो बना ली, लेकिन काफी कड़ी मशक्कत के बाद। कांग्रेस को इतनी कड़ी प्रतिस्पर्धा की कतई उम्मीद ना थी। कांग्रेस ने बहुत कम अंतरों से इन राज्यों में जीत दर्ज की है। इससे एक बात तो साबित होता है कि लोगों ने कांग्रेस को वोट नहीं दिया बल्कि नया विकल्प नहीं होने की वजह से बीजेपी के खिलाफ वोट किया।



मध्यप्रदेश में हालात तो ऐसे थे कि दोनों ही पार्टियों की नब्ज अटकी हुई थी। दोनों ही पार्टियों के लिए मध्यप्रदेश में करो या मरो की स्थिति थी। लेकिन फिर राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया। बता दें कि कांग्रेस ने बीेजेपी के गढ़ में घुसकर 230 सीटों में से 114 सीटों पर जीत दर्ज की। यहां हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश की। जी हां ये वहीं एमपी है जहां पर बीजेपी शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार चला रही थी।

यह मुकाबला इतना दिलचस्प था कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां बहुमत के जादुई आंकड़े से दो कदम दूर रह गई। एक ओर जहां कांग्रेस 114 सीटों के साथ मात्र दो सीट से यह आंकड़ा नहीं छू सकी तो वहीं बीजेपी 109 सीट जीतकर इस बहुमत के जादुई आंकड़े से 7 सीट दूर रह गई थी। वहीं अन्य में बात करें तो बहुजन समाज पार्टी को दो सीटें और समाजवादी पार्टी को एक सीट और चार सीट निर्दलीय उम्मीदवार को खाते में गईं।



राज्य में इस हार के बाद बीजेपी को एक और जहां एक सबक मिला वहीं इन चुनावों के बाद भी जनता की पहली पसंद पीएम नरेंद्र मोदी ही हैं। युवा अभी भी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को ही देश का नेतृत्व देना चाहती है। उनकी पीएम के रूप में पहली पसंद नरेंद्र मोदी ही हैं। यानि देखा जाए तो भले ही देश की जनता ने राज्य में कांग्रेस के पक्ष में वोट किया लेकिन देश के नेतृत्व के लिए नरेंद्र मोदी के बेहतर उनके लिए कोई नहीं है।


यदि युवाओं के इस सोच को देखा जाए तो 2019 में भी फिर से बीजेपी के सत्ता में आने की पूरी संभावना है। भले ही कांग्रेस ने तीन राज्यों में बीजेपी को पटखनी दे दी हो लेकिन अभी भी कांग्रेस के लिए आगे की डगर कांटों भरी है।


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पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार कर भी बीजेपी ने जीत ली बाजी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार कर भी बीजेपी ने जीत ली बाजी Reviewed by Santosh Bhartiya on 4:16 AM Rating: 5
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